जांजगीर-चाँपा

हरेली पर्व पर होगा गोठानों में पारंपरिक खेलों का आयोजन, व्यंजन प्रतियोगिता भी

हरेली पर्व की तैयारियां करने विभागों को दिए गए निर्देश

जांजगीर-चांपा। हरेली त्योहार 28 जुलाई के मौके पर जिले की गोठानों में पारंपरिक खेलों का आयोजन किया जाएगा। जिसमें गेड़ी-दौड़, कुर्सी दौड़, फुगड़ी, रस्सा-कस्सी, भौंरा, नारियल के अलावा छत्तीसगढ़ी व्यंजन आदि प्रतियोगिता भी होंगी। यह आयोजन जिला कलेक्टर तारन प्रकाश सिन्हा के निर्देशन एवं जिला पंचायत मुख्य कार्यपालन अधिकारी डॉ. फरिहा आलम के मार्गदर्शन में किया जाएगा। इस संबंध में संबंधित विभागों को आवश्यक तैयारियां करने के निर्देश दिए गए हैं।
जिपं सीईओ डॉ. आलम ने बताया कि राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी सुराजी गांव योजना के तहत नरवा, गुरूआ, घुरवा एवं बाड़ी का जिले में संरक्षण एवं संवर्धन किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि 20 जुलाई 2020 हरेली पर्व से गोधन न्याय योजना शुभारंभ की गई है। हरेली पर्व के मौके पर विभिन्न गतिविधियां एवं प्रतियोगिता का आयोजन किया जाएगा। जिसमें पारंपरिक खेल, पारंपरिक व्यंजनों की प्रतियोगिता होगी।
पशुओं के लिए लगाया जाएगा स्वास्थ्य शिविर
हरेली पर्व के दौरान गोठानों में पशुओं की देखभाल एवं उनके स्वास्थ्य की जांच की जाएगी। इस संबंध में संबंधित विभाग को निर्देश दिए गए हैं कि गोठान में स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया जाए। इसके अलावा गोठान में गोठान प्रबंधन समिति, स्व सहायता समूह, ग्रामीणों, जनप्रतिनिधियों से गोठान की गतिविधियों के संबंध में चर्चा की जाएगी। फसलों की सुरक्षा के लिए पशुओं को गोठान में लाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। गोठान में क्रय किये जा रहे गोबर, उत्पादित वर्मी कम्पोस्ट के रखरखाव, सुरक्षा के इंतजाम करने के लिए जागरूक किया जाएगा। तो वहीं वर्मी कम्पोस्ट का उत्पादन विक्रय एवं फसल में उपयोग फायदे के संबंध कृषकों को बताया जाएगा। गोठान में फलदार, छायादार पौधे लगाए जाएंगे।
जैविक खेती को मिला बल
जिपं सीईओ ने बताया कि गोठान में गतिविधियों का लगातार विस्तार हुआ है। गोठान में गोबर क्रय करते हुए संग्रहित गोबर से वर्मी कम्पोस्ट एवं अन्य उत्पाद तैयार किया जा रहा है। इससे फसलों में रसायनिक खाद की जगह पर जैविक खाद मिली और खेती को फायदा पहुंचा है। इसके अलावा रोजगार के नये अवसर, गौपालन एवं गौ-सुरक्षा को प्रोत्साहन के साथ मल्टीएक्टिविटी के माध्यम से स्व सहायता समूह को स्वावलंबी बनाया जा रहा है। तो वहीं रोका-छेका अभियान से खरीफ फसलों को पशुओं की खुली चराई से नियंत्रण किया जा रहा है।

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