रायपुर/ट्रैक सिटी : छत्तीसगढ़ आदिवासी स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं औषधीय पादप बोर्ड के अध्यक्ष श्री विकास मरकाम ने आज हरिद्वार स्थित पतंजलि योगपीठ में आचार्य बालकृष्ण जी से सौजन्य भेंट की। यह मुलाकात अत्यंत प्रेरणादायक एवं ज्ञानवर्धक रही। इस अवसर पर पारंपरिक ज्ञान, औषधीय पौधों, अनुसंधान एवं आयुर्वेद के क्षेत्र में किए जा रहे राष्ट्रहितकारी कार्यों का प्रत्यक्ष अवलोकन किया गया।
श्री मरकाम ने बताया कि आचार्य जी द्वारा संचालित संस्थान न केवल आयुर्वेद को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सशक्त बना रहा है, बल्कि पारंपरिक ज्ञान प्रणाली को संरक्षित कर उसमें मूल्य आधारित शिक्षा प्रणाली का समावेश कर युवा पीढ़ी को जोड़ने का उल्लेखनीय कार्य भी कर रहा है। औषधीय पौधों की जैव विविधता, पारंपरिक औषध निर्माण की प्रक्रिया तथा अत्याधुनिक अनुसंधान उपकरणों का समन्वय यह दर्शाता है कि पतंजलि भारतीय चिकित्सा परंपरा को वैश्विक मंच पर पुनः प्रतिष्ठित करने का एक मजबूत स्तंभ बन चुका है।
भेंट के दौरान श्री विकास मरकाम ने छत्तीसगढ़ की पारंपरिक वैद्य परंपरा, औषधीय पौधों तथा स्वदेशी उपचार पद्धतियों के संरक्षण एवं संवर्धन की साझी सोच को साझा किया। आचार्य श्री बालकृष्ण जी ने इस गहन दृष्टिकोण की मुक्तकंठ से सराहना की और छत्तीसगढ़ में इन कार्यों को आगे बढ़ाने हेतु हरसंभव सहयोग का आश्वासन भी दिया।
आचार्य जी ने विशेष रूप से जनजातीय समुदायों के पारंपरिक वैद्यराजों को प्रशिक्षण देने, दुर्लभ औषधीय वनस्पतियों का वैज्ञानिक डॉक्यूमेंटेशन करने, तथा पारंपरिक उपचार विधियों को शोध आधारित स्वरूप देने की गहरी इच्छा प्रकट की। उन्होंने इसे भारत की प्राचीन चिकित्सा धरोहर को पुनर्जीवित करने का अवसर बताया।
श्री मरकाम ने कहा “हमारा प्रयास है कि छत्तीसगढ़ में आदरणीय मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय जी एवं माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में पारंपरिक स्वास्थ्य परंपरा को सशक्त बनाते हुए इसे आधुनिक वैज्ञानिक ढांचे के साथ जोड़ा जाए। इससे न केवल हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित किया जा सकेगा, बल्कि जनजातीय समुदायों को सम्मान, रोजगार और आत्मनिर्भरता के नए अवसर भी प्राप्त होंगे।” यह साझेदारी न केवल स्वास्थ्य क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत की भावना को मूर्त रूप देगी, बल्कि ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की परिकल्पना को भी मजबूती प्रदान करेगी। पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का समन्वय ही भारत की विरासत को भविष्य से जोड़ने का सशक्त माध्यम है।