कोरबा

आयुर्वेद चिकित्सा विशेषज्ञ आयुर्वेदाचार्य नाड़ीवैद्य डॉ. नागेन्द्र नारायण शर्मा ने बताया कैसा रहे श्रावण मास में खान-पान एवं जीवनशैली

 

कोरबा/ट्रैक सिटी : हिंदी मासानुसार श्रावण मास का आरंभ 11 जुलाई 2025 शुक्रवार से हो गया है। जो 09 अगस्त 2025 शनिवार तक रहेगा। आयुर्वेद अनुसार प्रत्येक मास में विशेष तरह के खान-पान एवं दिनचर्या का वर्णन किया गया है जिसे अपनाकर हम स्वस्थ रह सकते हैं। इसी विषय पर छत्तीसगढ़ प्रांत के ख्यातिलब्ध आयुर्वेद चिकित्सक नाड़ी वैद्य डॉ.नागेंद्र नारायण शर्मा ने श्रावण मास में खान-पान और जीवन शैली के विषय मे जानकारी देते हुये बताया की आयुर्वेद का मुख्य प्रयोजन स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना तथा रोगी व्यक्ती के रोग को दूर करना है। इस प्रयोजन की पूर्ति हेतु आयुर्वेद में दिनचर्या, रात्रिचर्या एवं ऋतुचर्या का विधान बताया गया है। भारतीय परंपरा में ऋतुचर्या यानी ऋतुनुसार आहार-विहार करने की परंपरा रही है। यह संस्कार हमें विरासत में मिला है। अभी श्रावण मास का आरम्भ 11 जुलाई 2025 शुक्रवार से हो चुका है जो 09 अगस्त 2025 शनिवार तक रहेगा।इस अंतराल में हमें अपने आहार-विहार पर विशेष ध्यान देना चाहिये। श्रावण मास में वर्षा ऋतु अपने पूरे शबाब पर रहती है। श्रावण मास में अत्यधिक बारीश होने के कारण आसपास के वातावरण मे नमी और गंदगी फैल जाती है। जिसके कारण मच्छर, मक्खियां, कीट आदि बढ़ जाते हैं और संक्रमण होने का खतरा भी बढ़ जाता है।आयुर्वेदानुसार श्रावण मास में नमी होने के कारण वात दोष असंतुलित हो जाता है और हमारी पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है। इन सबके कारण भूख कम लगना, जोड़ों के दर्द, गठिया, सूजन, खुजली, फोड़े-फुंसी, दाद, पेट में कीड़े, नेत्राभिष्यन्द (आंख आना), मलेरिया, टाइफाइड, दस्त और अन्य रोग होने की सम्भावना बढ़ जाती है। इन सबसे बचाव हेतु अम्ल, लवण, स्नेहयुक्त भोजन, पुराने अनाज चावल, जौ, गेंहू, राई, खिचड़ी, मूंग, लौकी परवल, लौकी, तरोई, अदरक, जीरा, मैथी, लहसुन आदि वात का शमन करने वाले तथा पाचक अग्नि को बढ़ाने वाले हल्के, सुपाच्य, ताजे एवं गर्म खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिये। साथ ही इस मास में हरीतकी (हरड़) का सेवन अवश्य करना चाहिये जो हमारे वात दोष को संतुलित कर हमारी पाचन क्रिया को ठीक करने मे विशेष लाभकारी होता है। श्रावण मास में बारिश की वजह से सब्जियों में बीमारी फैलने वाले कीटाणु बहुत अधिक होते हैं। जो पत्तेदार सब्जियों के बीच तेजी से पनपने लग जाते हैं।अतः श्रावण मास में कच्ची हरी पत्तेदार साग-सब्जियाँ जैसे पालक, लाल भाजी, बथुआ, पत्ता गोभी, जैसी सब्जियों से परहेज करना चाहिये। इनके सेवन से उदर एवं त्वचा संबंधी रोग होने की संभावना होती हैं। इसलिये श्रावण मास में इनका सेवन वर्जित माना गया है। इस मास में बैंगन से भी परहेज करना चाहिये क्योंकि एक तो बैंगन वातकारक होता है और उसमे भी कीड़े लगने की संभावना अधिक रहती है। इस मास में मशरूम का सेवन भी बिल्कुल नहीं करना चाहिये। श्रावण मास में पत्ते वाली सब्जी के साथ-साथ चना, मोंठ, उड़द दाल, मटर, मसूर, आलू, कटहल, अरबी, दुध, दही आदि पचने में भारी खाद्य पदार्थों तथा बासी भोजन का सेवन नहीं करना चाहिये। संशोधित जल का प्रयोग करना चाहिए, कुंआ, तालाब और नदी के जल का प्रयोग बिना शुद्ध किये नहीं करना चाहिए। पानी को उबाल कर उपयोग में लेना श्रेष्ठ है। जीवन शैली- इस मास में अभ्यंग अर्थात् शरीर में तेल की मालिश करनी चाहिये।स्वच्छ एवं हल्के वस्त्र पहनने चाहिये, ऐसे स्थान पर शयन करना चाहिये जहां अधिक हवा और नमी न हो। भीगने से बचना चाहिये यदि भीग गये हों तो यथाशीघ्र सूखे कपड़े पहनने चाहिये, नंगे पैर, गीली मिट्टी या कीचड़ में नहीं जाना चाहिये, सीलन युक्त स्थान पर नहीं रहना चाहिए तथा बाहर से लौटने पर हांथ-पैरों को अच्छी तरह धोकर पोंछ लेना चाहिये।श्रावण मास में दिन में सोना, खुले में सोना, रात्रि जागरण, अत्यधिक व्यायाम, धूप सेवन, अत्याधिक परिश्रम, अज्ञात नदी, जलाशय में स्नान नहीं करना चाहिये। तथा कीट-पतंग एवं मच्छरों से बचने के लिए मच्छरदानी का उपयोग करने के साथ साथ घर के आसपास पानी इकठ्ठा न होने दें एवं साफ़-सफाई पर विशेष ध्यान दें। इन सभी बातों को ध्यान मे रखते हुये मौसम के बदलाव के साथ ही श्रावण मास में अपने खान-पान एवं जीवनशैली में जरूरी बदलाव करके, सात्विक आहार-विहार द्वारा मौसमी बीमारियों से बचाव कर स्वस्थ रहा जा सकता है।

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