कोरबा (ट्रैक सिटी)। लोक आस्था और सूर्य उपासना के महापर्व छठ का मंगलवार को चौथा और अंतिम दिन रहा। बीती शाम श्रद्धालुओं ने डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का तीसरा चरण पूरा किया, वहीं बुधवार की सुबह जीवनदायिनी हसदेव नदी के पुरानी बस्ती छठ/भोजली घाट पर हजारों व्रती और उनके परिवारजन उगते सूर्य को अर्घ्य देने पहुंचे। अर्घ्य अर्पण के साथ ही चार दिवसीय छठ महापर्व विधि-विधानपूर्वक संपन्न हुआ।
छठ घाटों पर छठ मइया के गीतों की मधुर गूंज से पूरा वातावरण भक्तिमय बन गया। श्रद्धालु “दर्शन देहु हे छठी मइया…”, “कांच ही बांस के बहंगिया…”, “छोटी-मोटी चौकिया हे सूरज देव…” जैसे पारंपरिक गीतों पर झूम उठे। शहर, उपनगर और ग्रामीण अंचलों में चारों ओर भक्ति और उत्साह का माहौल दिखाई दिया।
छठ पर्व के लिए विशेष रूप से सजे ढेंगुरनाला,पुरानी बस्ती छठ/भोजली घाट, सर्वमंगला मंदिर हसदेव नदी, तुलसी नगर घाट, मुड़ापार तालाब, शिव मंदिर (एसईसीएल), मानिकपुर पोखरी, बालको, दर्री, बांकीमोंगरा और गेवरा-दीपका के घाटों पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। अर्घ्य अर्पण के बाद श्रद्धालुओं ने आतिशबाजी कर खुशियाँ मनाईं।
इस अवसर पर अपूर्व आस्था, समर्पण और श्रद्धा का पावन संगम देखने को मिला। सूर्य षष्ठी का यह पर्व श्रद्धालुओं की गहरी आस्था का प्रतीक बन गया।
व्रतियों ने बताया कि छठ पर्व जितना कठिन उपवास का पर्व है, उतना ही यह शुद्धता और आस्था का भी प्रतीक है। पूजा की प्रत्येक सामग्री और प्रक्रिया में पूर्ण पवित्रता रखनी पड़ती है। उन्होंने कहा, “जो संस्कार हमारे पूर्वजों से मिले हैं, हम उसे आगे बढ़ा रहे हैं।”
व्रतियों ने बताया कि छठ पर्व की शुरुआत माता सीता ने की थी। रावण वध के पश्चात प्रभु श्रीराम के साथ अयोध्या लौटने पर माता सीता ने वंश की वृद्धि और दोष निवारण के लिए सूर्य उपासना का यह व्रत किया था। तभी से यह परंपरा निरंतर चली आ रही है।
36 घंटे का कठोर व्रत
व्रतियों को लगभग 36 घंटे तक निर्जला उपवास रखना पड़ता है। यह व्रत परिवार की मंगलकामना, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए किया जाता है। उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पण के साथ ही पर्व संपन्न होता है और इसके बाद प्रसाद वितरण किया जाता है।
				
					
