कोरबा

मंगलवार से शुरू हो गया है होलाष्टक, होली तक ना करें ये शुभ कार्य….

कोरबा,01 मार्च (ट्रैक सिटी न्यूज़) होली, केवल एक पर्व नहीं, बल्कि खुशियों के संगम का एक महोत्सव है। जिसे लोग बड़े ही हर्षोल्लास और धूमधाम के साथ मनाते हैं। पूरा वातावरण रंगों एवं उमंगों में सराबोर हो जाता है। इस साल, होली का त्यौहार 08 मार्च, 2023, दिन बुधवार को मनाया जाएगा। इसके आठ दिन पहले, यानी कि 27 फरवरी 2023 से होलाष्टक शुरू हो रहा है। शास्त्रों में फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से लेकर होलिका दहन तक की अवधि को होलाष्टक कहा जाता है।

होली के आठ दिन पहले से होलाष्टक मनाया जाता है। होलाष्टक से लेकर होलिका दहन तक की अवधि का विशेष महत्व माना गया है। इस बीच में होली की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, जिस दिन से होलाष्टक लगता है, तब से लेकर होलिका दहन तक किसी भी तरह का शुभ या मांगलिक कार्य करना वर्जित माना जाता है। तो आइए जानते हैं कि कैसे हुई होलाष्टक की शुरुआत…

होलाष्टक का महत्व
होलाष्टक की अवधि, भक्ति की शक्ति का प्रभाव बताती है। इस अवधि में तप करना ही अच्छा माना जाता है। होलाष्टक शुरू होने पर एक पेड़ की शाखा काटकर उसे जमीन पर लगाकर उसमें रंग-बिरंगे कपड़ों के टुकड़े बांधे जाते हैं, जिसे भक्त प्रह्लाद का प्रतीक माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, जिस क्षेत्र में होलिका दहन की तैयारी की जाती हैं, उस क्षेत्र में होलिका दहन तक कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि होलाष्टक के 8 दिनों में कोई भी मांगलिक कार्य करना शुभ नहीं होता है। इस दौरान शादी-विवाह, भूमि पूजन, गृह प्रवेश या फिर कोई भी नया काम शूरू नहीं करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार, होलाष्टक शुरू होने के साथ ही 16 संस्कार, जैसे:- नामकर संस्कार, जनेऊ संस्कार, गृह प्रवेश, विवाह आदि जैसे शुभ कार्यों पर रोक लग जाती है।

होलिका और भक्त प्रह्लाद की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, राजा हिरण्यकश्यप का बेटा, प्रह्लाद, भगवान श्रीहरि विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। जिसे, उनकी भक्ति से दूर करने के लिए राजा हिरण्यकश्यप ने आठ दिनों तक कठिन तपस्या की। उसके बाद, आठवें दिन, राजा हिरण्यकश्यप की बहन, होलिका, जिसे आग में ना जलने का वरदान प्राप्त था, वह, भक्त प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठी और जल गई, लेकिन भक्त प्रह्लाद को अग्नि की एक आंच ने भी प्रभावित नहीं किया। तब से ये आठ दिन, कठिन यातना के समान माने जाने लगे और इसी कारण से इन दिनों में कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित माना जाने लगा।

होलाष्टक की पौराणिक मान्यता
मान्यता है कि होली से पहले के आठ दिन, यानी अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक, विष्णु भक्त प्रह्लाद को काफी यातनाएं दी गईं थीं। प्रह्लाद को फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी के दिन ही हिरण्यकश्यप ने बंदी बना लिया था। प्रह्लाद को जान से मारने के लिए तरह-तरह की यातनाएं दी गईं लेकिन, प्रह्लाद, विष्णु भक्ति के कारण भयभीत नहीं हुए और विष्णु कृपा से हर बार बच गए। यातनाओं से भरे उन आठ दिनों को ही अशुभ मानने की परंपरा बन गई और उन दिनों, कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित माना जाने लगा।

इसके बाद भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर नृसिंह भगवान प्रकट हुए और प्रह्लाद की रक्षा कर, हिरण्यकश्यप का वध किया। तभी से भक्त पर आए इस संकट के कारण इन आठ दिनों को होलाष्टक के रूप में मनाया जाता है। होलाष्टक के दौरान, शुभ कार्य वर्जित होते हैं। इसके साथ ही एक कथा यह भी है कि इस दिन ही कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या भंग करने की कोशिश की थी, जिसके चलते महादेव क्रोधित हो गए थे और उन्होंने, अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म कर दिया था।

Editor in chief | Website |  + posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button