कोरबा (ट्रैक सिटी)/ बहुद्देशीय हसदेव बांगो बांध परियोजना से प्रभावित एतमानगर, बांगो, माचाडोली, लालपुर सहित अनेक गांव के मछुआरों ने ठेकेदारी व्यवस्था के अंतर्गत मत्स्य पालन करना साफ तौर पर अस्वीकार्य कर दिया है। उन्होंने कहा कि लंबे समय से वे शोषण का शिकार हैं और इस तरह की स्थिति को अधिक समय तक बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। बांगो में आज बैठक कर उन्होंने खुद कारोबार करने की बात कही। मछुआरों की नाराजगी इस बात को लेकर भी रही कि जो पारिश्रमिक उन्हें दिया जा रहा है वह बेहद अपर्याप्त है।
मछुआरों का कहना है कि बांगो डेम का निर्माण उनके लिए सिर्फ जमीन ही नहीं बल्कि आजीविका का स्थायी आधार भी ले गया। करीब 11,500 हेक्टेयर में फैले इस डेम में 58 गांवों की जमीन डूब गई थी। पुनर्वास और मुआवजा पर्याप्त नहीं था, इसलिए उस समय सरकार ने आश्वासन दिया था कि प्रभावित ग्रामीणों को जीवनभर डेम में मछली पकडऩे का अधिकार मिलेगा, जिससे वे अपने परिवार का पालन-पोषण कर सकेंगे।
कुछ वर्षों तक यह व्यवस्था सही से चलती रही और लोग स्वतंत्र रूप से मछली पकडक़र बेचते रहे। लेकिन बाद में रॉयल्टी सिस्टम लागू किया गया और अब मत्स्य महासंघ द्वारा ठेकेदारी प्रथा लागू कर दी गई। ग्रामीणों का आरोप है कि ठेकेदारी व्यवस्था ने उनकी आय आधी कर दी है। अब उन्हें डेम में मछली पकडऩे के लिए भी ठेकेदार की अनुमति पर निर्भर रहना पड़ता है और बेचने के लिए भी उसी ठेकेदार के तय भाव को मानना पड़ता है।
विवादों के घेरे में है टेंडर प्रक्रिया
ग्रामीणों ने बताया कि ठेका आवंटन की प्रक्रिया शुरू से ही विवादों में रही। पोड़ी-उपरोड़ा तहसील कार्यालय का घेराव कर ग्रामीणों ने टेंडर का विरोध किया था, लेकिन इसके बावजूद सरकार ने रायपुर के एक ठेकेदार को 51 लाख रुपये में ठेका दे दिया। ग्रामीणों का आरोप है कि टेंडर प्रक्रिया में उनकी आपत्तियों को नजरअंदाज किया गया और क्षेत्र के मछुआरों के हितों की अनदेखी की गई।अब स्थिति यह है कि ग्रामीणों को मजबूरी में उसी ठेकेदार के तहत मछली पकडऩी पड़ रही है, और खरीदी दर इतनी कम है कि उनकी रोजमर्रा की ज़रूरतें भी पूरी नहीं हो पा रही हैं। कई मछुआरे कर्ज के बोझ तले दबने लगे हैं। मछुआरों का कहना है कि उन्होंने पूरे मामले को लेकर अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधियों को अवगत कराया, लेकिन इसके कोई नतीजे नहीं रहे।
बैठक फिर रही बेनतीजा, आंदोलन की तैयारियों में जुटे ग्रामीण
मंगलवार को हुई बैठक में मछुआरों ने स्पष्ट रूप से कहा कि ठेकेदारी प्रणाली उनके जीवन पर सीधा प्रहार है। बैठक में किसी भी पक्ष द्वारा समाधान प्रस्तुत नहीं किए जाने से मछुआरों का गुस्सा और बढ़ गया है। ग्रामीण प्रतिनिधियों ने चेतावनी दी है कि यदि मत्स्य महासंघ की ठेकेदारी नीति तुरंत वापस नहीं ली गई और मछली खरीदी दर को न्यायपूर्ण स्तर पर नहीं बढ़ाया गया तो 58 गांवों के मछुआरे एक बड़े आंदोलन के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि उनका संघर्ष अब सिर्फ आर्थिक अधिकारों का नहीं, बल्कि सम्मान और अस्तित्व की रक्षा का है।ग्रामीणों की प्रमुख मांगें है कि ठेकेदारी प्रथा का तत्काल समाप्तिकरण, प्रभावित मछुआरों को स्वतंत्र रूप से मछली पकडऩे का अधिकार, मछली खरीदी के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करना, टेंडर प्रक्रिया की जांच और स्थानीय समुदाय की सहभागिता को सुनिश्चित करना।

