कोरबा

गुरु और शिष्यों के बीच 22 साल बाद छलका प्रेम

शिक्षक उस दीपक के सामान है जिनके ज्ञान के सहारे छात्र होते हैं रोशन

 शिक्षकों ने कल्पना भी नहीं की थी कि बाल दिवस पर 22 साल बाद याद कर सम्मान करेंगे उनके पुराने छात्र

कोरबा(बालकोनगर)/ट्रैक सिटी न्यूज़। l दीपक की लौ भले ही हवाओं के तूफानों में बुझ जाए लेकिन उसके उजाले की रौनक से सारा जहां रौनक होता है। शिक्षक उसी दीपक के समान है जिसके ज्ञान के सहारे उसके अपने पढ़ाए हुए छात्र सारे जहां को अपनी योग्यता से और गुरुजनों के मार्गदर्शन से सारे जहां को रोशन कर रहे हैं।


शिक्षक अपने शिष्यों को शिक्षा देने के बाद वह भूल जाता है कि कभी कोई उसका शिष्य उन्हें याद करेगा। उन्हें उम्मीद नहीं रहती कि कोई छात्र उसे याद करे और सम्मान करे। आज के भौतिक वादी व सोशल मीडिया के युग में तो और भी कठिन है। ऐसे समय में अगर छात्र ढूंढ़कर अपने शिक्षकों का सम्मान करे तो यह किसी उदयमान भविष्य का संकेत है कि गुरुकुल भले खत्म हो गए लेकिन गुरु की महिमा आज भी उनके शिष्यों ने बरकरार रखी है। बाल दिवस के पूर्व ऐसे ही शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बालको के कुछ छात्रों ने मिलकर 22 साल बाद अपने गुरुजनों का सम्मान करने का जब निर्णय लिया तो इसकी उम्मीद और कल्पना उनको पढ़ाने वाले गुरुजनों ने भी नहीं की थी लेकिन धन्य हैं वे छात्र जिन्होंने अपने गुरुजनों की उनकी कल्पना और उम्मीदों से आगे जाकर उनका भावभीनी तरीके से सम्मान किया तो कुछ देर के लिए माहौल भावुक हो गया। हालांकि शिक्षकों ने इस भावुक माहौल को संभाला और हंसी-ठिठोली करते हुए चुटकीलों के साथ गीतों से कार्यक्रम को फिर खुशनुमा बना दिया।


गुरु और शिष्यों ने साझा किए अनुभव
बाल दिवस पर 22 सालोंबाद शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बालकोनगर के शिक्षकगण और छात्र एक-दूसरे से मिले और अपने अनुभव को साझा किया। 1999-2000 बैच के 12वीं के छात्रों के द्वारा गुरुजनों का सम्मान समारोह का कार्यक्रम उत्सव वाटिका बालको में शनिवार को संपन्न हुआ। शिक्षकों में मधुलिका गीर, ऊमा चटर्जी, गौरीशंकर डिक्सेना, डॉ. चंद्रावती नागेश्वर, ऊषा दवे, सुधा शर्मा, रामहरी सराफ, गीता साहू, पुरुषोत्तम कुमार कौशिक, गीता रानी हलधर, राजेश कुमार पसीने, रमा कर्माकर, पूरनचंद पटेल, नीलकंठ राठौर, कृष्ण कुमार चंद्रा, घनश्याम श्रीवास, प्रबिला टोप्पो, मनोकांता पाल और मजीद खान थे। कार्यक्रम को सफल बनाने में छात्र विवेकानंद, लिलेश्वर व साथी छात्रों द्वारा संपन्न कराया गया।

स्कूल की कायाकल्प देख अभिभूत हुए छात्र
सन् 2000 में पास हुए 12वीं के छात्र 22 साल के बाद अपने स्कूल पहुंचे। स्कूल के कायाकल्प को देख अभिभूत हो गए । मनोकांता पाल मैडम जो स्कूल की प्राचार्य हैं कभी उन छात्रों को सामाजिक विज्ञान पढ़ाया करती थीं। श्रीमती पाल के द्वारा उन सभी छात्रों को पूरे स्कूल का भ्रमण कराया गया। स्कूल की सुविधाओं और फिटनेस रुम से लेकर आईटी कक्ष के साथ सभी कक्षाओं में अध्ययनरत छात्रों से उनका परिचय भी कराया। आज वह स्कूल स्वामी आत्मानंद स्कूल बन गया है। छात्रों में विवेकानंद साव, अवधेश सिंह, सुनील सिंह, यशवंत लदेर, मानसिंह, नरेन्द्र रात्रे, अभय सिंह, चंद्रशेखर, सत्येन्द्र, दिनेश, संजय शाह, संतोष विश्वकर्मा, सुनील फुल्लर, सत्यराज, संतोष राठौर, जागेन्द्र, राकेश सोनी, मो. कलामुद्दीन, मो. ईस्लाम, लिलेश्वर शर्मा, सुरेन्द्र चंद्रा, मनीष, नरेन्द्र कुर्रे, अल्पेश पटेल, योगेश्वर, गुलाब पाटले और गंगाराम भारद्वाज शामिल थे।

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