कोरबा

जन्में यहीं, खेले-पढ़े भी यहीं…अब 15 साल के दस्तावेज के चक्कर में निवासी नहीं

तहसीलाें में निवास प्रमाण पत्र बनवाने भटक रहे हैं लाेग, नए नियमाें ने सरलीकरण के बजाए बढ़ाई मुसीबत, राजस्व अधिकारियाें का अलग-अलग तर्क

काेरबा। ऊर्जानगरी हाेने से दूसरे जिलाें व अन्य राज्याें से बढ़ी संख्या में काेरबा में लाेग कमाने-खाने पहुंचते हैं। यहां के अमन-चैन काे देखते हुए ज्यादातर लाेग यहीं बस जाते हैं। ऐंसे में बच्चाें का जन्म और उनकी पढ़ाई-लिखाई भी यहीं हाेती है। लेकिन अब स्कूल की शिक्षा के बाद काॅलेज एडमिशन या राेजगार के सिलसिले में निवास प्रमाण पत्र बनवाने के लिए ऐसे लाेग भटक रहे हैं। न ताे च्वाइस सेंटराें और न ही तहसील कार्यालय में निवास प्रमाण पत्र बन पा रहे हैं। वजह शासन द्वारा निवास प्रमाण पत्र बनाने के लिए नए नियम लागू किया जाना है। दरअसल पहले अभिभावक के प्रमाण पत्र या बच्चाें के पहली, पांचवी, आठवीं के अंकसूची के अाधार पर उनके स्कूल के स्थान के आधार पर निवास प्रमाण पत्र बना करते थे। लेकिन अब नए नियम में निवास प्रमाण पत्र के लिए 15 साल से स्थायी रूप से निवासरत हाेने का दस्तावेज संलग्न करना जरूरी हाे गया है। बाहर से आने के बाद शहरी क्षेत्र के स्कूलाें में बच्चाें की पढ़ाई कराने वाले ज्यादातर लाेग निवास प्रमाण पत्र के लिए तय मापदंड काे पूरा नहीं पा रहे हैं इसलिए भटकना पड़ रहा है। प्रतिदिन तहसीलाें से 50-60 लाेगाें काे बैरंग लाैटना पड़ रहा है। ऐसे में कई लाेग दलालाें के चक्कर में पड़कर पैसे भी गवां रहे हैं।

रहवास बदलते ही एक-दूसरे तहसील का चक्कर
काेरबा में शहर व उपनगरीय क्षेत्र दर्री-जमनीपाली, जैलगांव, बालकाेनगर में एक दशक के भीतर कई कालाेनियां बनी। ज्यादातर लाेग औद्याेगिक उपक्रमाें में कार्यरत और उनकी ही कालाेनी में निवासरत थे। वे स्वयं के मकान में रहने के लिए ऐसे कालाेनियाें में चले गए। एेसे में ज्यादातर परिवार के रहवास क्षेत्र का तहसील बदल गया। अब बच्चाें की शिक्षा दूसरे तहसील में और निवासरत दूसरे तहसील में है। ऐसे में निवास प्रमाण पत्र बनवाने के लिए पहुंचने पर उन्हें नियमाें का हावाल देकर एक से दूसरे तहसील के बीच चक्कर लगवाया जा रहा है।
बाक्स
स्कूली शिक्षा के बाद अटक रहा काॅलेज एडमिशन
बाहर से आने वाले परिवार के बच्चाें के लिए पहले उनके प्राथमिक कक्षाओं की अंकसूची ही निवास प्रमाण पत्र के लिए दस्तावेज के रूप में काम आती थी। लेकिन अब न्यूनतम 15 साल का प्रमाण पत्र पेश करने का नियम है। एेसे में बच्चे के 12वीं कक्षा पास करने पर करीब 12वर्ष का ही प्रमाण हाेता है। परिवार के पास इससे पहले स्वयं रहने का प्रमाण नहीं है ताे काॅलेज में एडमिशन भी अटक जा रहा है।
केस-1
प्रमाण पत्र नहीं बन रहा…बच्चें काे कैसे पढ़ाऐंगे आगे
काेसाबाड़ी निवासी संजय मंडल के मुताबिक वह मूलत: पश्चिम बंगाल का रहने वाला है। 18 साल पहले वह कमाने के लिए परिवार समेत काेरबा आया था। तब से यहीं बस गया। शुरूअात में उसने काेई भी दस्तावेज नहीं बनवाया। बच्चे काे नर्सरी से लेकर 12 वीं तक उसने काेरबा के स्कूल में पढ़ाया। अब काॅलेज एडमिशन के लिए निवास प्रमाण पत्र का जरूरत पड़ने पर तहसील पहुंचा। जहां 2-3 माह से चक्कर लगा रहा है। अब बच्चें काे अागे कैसे पढ़ाएगा उसे इसकी चिंता है।
केस-2
20 साल रहे कुसमुंडा में अब निवास के लिए भटक रहे
ट्रांसपाेर्टनगर में करीब ढाई साल से किराए में रहने वाले महेश अग्रवाल ने बताया कि उनके माता-पिता कुसमुंडा में निवासरत थे। जहां उन्हाेंने कक्षा-1 से 12वीं तक बिकन स्कूल में पढ़ा। करीब 20 साल तक रहे। अब निजी कंपनी में जाॅब के चलते वे वहां के मकान काे बेचकर शहर में रहने लगे। निवास प्रमाण पत्र की जरूरत पड़ी ताे काेरबा तहसील गए। जहां से ज्यादातर समय कुसमुंडा में निवासरत हाेने की बात कहकर दीपका तहसील भेजा गया। दीपका से वर्तमान में काेरबा में निवासरत हाेने की बात कहकर काेरबा तहसील जाने काे कहा गया। इस तरह अब भटकना पड़ रहा है।
केस-3

दस्तावेज नहीं थे, आत्मानंद स्कूल में नहीं हुअा एडमिशन
बालकाेनगर निवासी रमेश यादव ने बताया कि वे काम करने के लिए करीब 15 साल पहले बालकाे प्लांट में अाया था। जिसके बाद घर लेकर रहने लगा। 10 साल पहले उसने शादी की। बच्चा हाेने के बाद अब आत्मानंद स्कूल में एडमिशन के लिए गया ताे वहां 15 साल का प्रमाण पत्र मांगा गया। शादी के बाद उसने प्रमाण पत्र बनवाया था इसलिए 10 साल ही हुआ था। ऐसे में बच्चे के लिए निवास प्रमाण पत्र नहीं बना ताे एडमिशन भी नहीं हुआ।
वर्सन
15 साल के नियम के चक्कर में हाे रही परेशानी
काेरबा तहसीलदार साेनिया मेरिया के मुताबिक नए नियम के अाधार पर निवास प्रमाण पत्र जारी किए जा रहे हैं। जिसमें 15 साल से निवासरत हाेने का प्रमाण के रूप में दस्तावेज देना अनिवार्य है। ऐसे में जाे निर्धारित प्रक्रिया काे पूरा कर रहे हैं उनका निवास प्रमाण पत्र बन रहे हैं। जिनके पास प्रमाण नहीं है उन्हें नए नियम के चक्कर में परेशान हाेना पड़ रहा है। लेकिन इसमें कुछ नहीं किया जा सकता है। जिले में एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में शिफ्ट हुए लाेगाें काे कम से कम 3 साल का निवासी हाेना जरूरी है।
वर्सन
जहां वर्तमान निवास वहां ही बनेगा प्रमाण पत्र
दीपका के नायब तहसीलदार वीरेंद्र श्रीवास्तव के मुताबिक नए नियमाें के तहत निवास प्रमाण पत्र के लिए आवेदक काे न्यूनतम 15 साल का निवासी हाेना चाहिए। अथवा उक्त स्थान पर अचल स्थायी संपति हाेनी चाहिए। जिले में एक तहसील से दूसरे तहसील में जाकर निवासरत हाेने पर 6 माह से वर्तमान में निवासरत है वहां का निवासी मानते हुए प्रमाण पत्र जारी किया जाता है। शासन के नियमाें के तहत तय मापदंड काे पूरा नहीं करने पर प्रमाण पत्र जारी नहीं किया जा सकता।
एक्सपर्ट राय
राजस्व अधिकारियाें ने बढ़ा दी मुसीबत, प्रशिक्षण की जरूरत
जिला अधिवक्ता संघ के सचिव नूतन सिंह ठाकुर के मुताबिक निवास प्रमाण पत्र के लिए शासन ने सरलीकरण की है। लेकिन राजस्व अधिकारियाें काे सही जानकारी नहीं हाेने के चलते उन्हाेंने लाेगाें की मुसीबत बढ़ा दी है। ऐसे में राजस्व अधिकारियाें काे इस संबंध में प्रशिक्षण देने की जरूरत है।

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