कोरबा

जिले के गौपालक 4 रुपए प्रति लीटर में गौ मूत्र बेचकर कमा रहे आर्थिक लाभ, गौठानों में अभी तक दो हजार 874 लीटर गौ मूत्र की हुई खरीदी

गोमूत्र से जैविक कीटनाशक ब्रह्मास्त्र और जीवामृत बनाकर महिला समूहों को 63 हजार रुपए से अधिक का हुआ फायदा

 

गौ मूत्र से बने उत्पाद फसलों, पौधों के लिए बना वरदान

कोरबा / मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के मंशा अनुसार जैविक खेती की ओर किसानों को अग्रसर करने और फसलों को रासायनिक दवाइयों से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए जिले के दो गौठानों में गोमूत्र की खरीदी की जा रही है। साथ ही गौ मूत्र से जैविक कीटनाशक का निर्माण भी किया जा रहा है। गौठानों में गोमूत्र विक्रय से जहाँ ग्रामीणों को आर्थिक लाभ मिल रहा है, वहीं गोमूत्र से जैविक कीट नियंत्रक ब्रह्मास्त्र और वृद्धिवर्धक जीवामृत बनाकर और इसे बेचकर ग्रामीण महिलाएं आर्थिक लाभ कमा कर रहीं हैं। जिले में दो समूह की महिलाओं ने दो हजार 400 लीटर गोमूत्र उत्पाद तैयार कर 63 हजार 385 रुपये का विक्रय किया है। जिले के कोरबा विकासखंड के चिर्रा एवं पाली के ग्राम सेंद्ररीपाली गौठान में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में गोमूत्र की खरीदी की जा रही है। इन गौठानों में ग्रामीणों ने उत्साह दिखाते हुए दो हजार 874 लीटर गोमूत्र 4 रुपये प्रति लीटर की दर से बेचकर 11 हजार 496 रुपए का लाभ कमाया है।

राष्ट्रीय आजीविका मिशन बिहान अंतर्गत स्व सहायता समूह की महिलाएँ गोमूत्र से जैविक कीट नियंत्रक ब्रह्मास्त्र और वृद्धिवर्धक जीवामृत बना रहीं हैं। महिलाओं द्वारा जैविक कीटनाशक गोमूत्र, नीम के पत्ते, पपीता, करंज, बिही के पत्तों से तैयार किया जा रहा है। वहीं वृद्धिवर्धक जीवामृत गोमूत्र, गुड़ गोबर, बेसन से बनाया जा रहा है। समुह की महिलाओं ने दो हजार 400 लीटर गोमूत्र से एक हजार 431 लीटर ब्रह्मास्त्र और जीवामृत तैयार किया है, जिसमें से एक हजार 195 लीटर कीट नियंत्रक एवं 200 लीटर वृद्धिवर्धक बनाया है। महिलाओ द्वारा गौ मूत्र से तैयार ब्रह्मास्त्र को 50 रुपये प्रति लीटर तथा जीवामृत को 40 रुपये प्रति लीटर की दर से बेचा जा रहा है। चिर्रा गौठान की चंद्रमुखी स्व सहायता समूह की अध्यक्ष ललिता राठिया का कहना है कि छत्तीसगढ सरकार की गोमूत्र विक्रय योजना हम ग्रामीणों को लाभ देने वाली योजना है। इस योजना से ग्रामीण गोमूत्र बेचकर पैसे कमा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर ग्रामीण महिलायें जैविक कीटनाशक और वृद्धिवर्धक बना कर, इसे बेचकर आर्थिक लाभ ले रहीं हैं। ललिता ने बताया कि इस महती योजना चलाने के लिए प्रदेश के मुखिया के हम आभारी हैं।

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