पंचायती राज में महिलाओं की भूमिका पर हुआ मंथन
भारतीय संसदीय संस्थान-जनसंख्या एवं विकास, नई दिल्ली एवं छत्तीसगढ़ विधानसभा के संयुक्त तत्वावधान में महिला सशक्तिकरण एवं सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु पंचायती राज संस्थाओं की भूमिका पर कार्यशाला का आयोजन किया गया।
कोरबा जिले के प्रियदर्शनी इंदिरा स्टेडियम परिसर स्थित राजीव गांधी ऑडिटोरियम में आयोजित कार्यशाला का शुभारंभ दीप प्रज्वलन व राज्य गीत गाकर किया गया। कार्यशाला के संबंध में प्रस्तावना मनमोहन शर्मा, सचिव आईएपीपीडी के द्वारा प्रस्तुत की गई। इस अवसर पर मुख्य अतिथि पूर्व सांसद एवं भारतीय संसदीय संस्थान जनसंख्या एवं विकास की उपाध्यक्ष श्रीमती विप्लव ठाकुर ने कहा कि बार-बार सशक्तिकरण की बातें करने की जरूरत आखिर क्यों आती है? पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी ने पंचायती राज में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देकर गांव से नेतृत्व पैदा किया। वे चाहते थे कि गांव से चुनकर भी लोग आएं क्योंकि ऐसे लोग ही गांव का उद्धार कर सकते हैं, लेकिन महिलाओं की जगह उनके पति प्रधान हो गए। पंचायत के सचिव महिला प्रधान के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते और इस बात को संसद में उठाया भी। महिला सरपंच-पंच को पूरी पंचायत राज व्यवस्था, अपने कर्तव्य, अधिकार को पहले समझने की जरूरत है। पुरूषों को यह समझना होगा कि महिला उनकी साथी है, वह प्रतिस्पर्धी नहीं परंतु साथ लेकर परिवार व गांव को बदलना चाहती है। महिला को वस्तु न समझें और जब तक महिला को वस्तु समझेंंगे, महिला का उद्धार नहीं हो सकता सशक्तिकरण तो दूर की बात है। श्रीमती ठाकुर ने कहा कि कानून बहुत से बनाए गए हैं परंतु वे लागू नहीं होते, जिसे लागू कराना भी महिला की जिम्मेदारी है। न्याय की कुर्सी पर बैठकर महिला पंच-प्रधान को निर्णय लेते वक्त निर्भय होना चाहिए। अपने पारिवारिक रिश्तों और निर्णय से दूर रखना होगा तभी पंचायती राज में महिला सशक्त हो पाएगी। उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी के कांग्रेस को, उनकी प्रेरणा को जिंदा रखना है तो राजीव गांधी ने पंचायती राज के जरिए महिला सशक्तिकरण का जो सपना देखा था, उसे पूरा करना होगा। पुरूषों की मानसिकता महिलाओं के प्रति बदलने की जरूरत है।
कोरबा लोकसभा क्षेत्र की सांसद श्रीमती ज्योत्सना चरणदास महंत ने कहा कि महिला सशक्तिकरण कहना आसान है परंतु सही रूप देना महिलाओं का कर्तव्य है। महिला को शिक्षित होना जरूरी है तभी वह निर्णय लेने का अधिकार समझ पाएगी और सशक्त होगी। अपने पंचायत में सरपंच की भूमिका मुख्यमंत्री की तरह होती है, यदि वे शिक्षित होंगी तो समाज सशक्त होगा। जनप्रतिनिधि को यदि राजनीतिक मंच मिला है तो इसके सहारे समाज, परिवार, गांव का बहुत अच्छे से उद्धार कर सकते हैं। महिलाएं कभी भी अपने को छोटा न समझे। सांसद ने कहा कि महिला अबला नहीं है जबकि अबला कहने वाले कमजोर हंै। महिलाएं खुद को सशक्त बनाएं, आगे बढ़कर अपना अधिकार छीने और जो जिम्मेदारी मिली है उसे पूरा करने स्वयं सिद्धा बनें।
इससे पहले छत्तीसगढ़ की महिला एवं बाल विकास मंत्री अनिला भेड़िया ने आयोजन के लिए कोरबा सांसद को साधुवाद देते हुए कहा कि पंचायती राज में महिलाएं 50 प्रतिशत नेतृत्व करती हैं लेकिन वे वहां कमजोर हो जाती हंै जब परिवार के सदस्य हस्तक्षेप करते हैं। इस हस्तक्षेप को रोकना होगा, यह हमें कमजोर करता है। पंचायत एवं ग्रामसभा में अपने ताकत और अधिकार को पहचाने। छत्तीसगढ़ सरकार महिलाओं को समूह के जरिए आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने व रोजगार देने कई तरह के कार्य कर रही हैं।
पूर्व राज्यसभा सांसद श्रीमती छाया वर्मा ने कहा कि पहले घर से निकलने में संकोच करने वाली महिलाएं आज हर क्षेत्र में धरती से लेकर आकाश तक अपनी प्रतिभा दिखा रहीं है। उन्हें जरूरत है अवसर व समय प्रदान करने की। जहां-जहां भी महिलाएं पदों पर बैठी है, वहां भ्रष्टाचार कम है, वहां पूरी संजीदगी और गंभीरता से काम होता है। नवा छत्तीसगढ़ में निश्चित रूप से महिलाओं के परिवेश में चहुंमुखी विकास हो रहा है।
संसदीय सचिव रश्मि सिंह ने कहा कि देश की पहली महिला प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने जो 20 सूत्रीय कार्यक्रम शुरू किया, वह आज भी क्रियान्वयन हो रहा है। महात्मा गांधी के पंचायती राज का सपना साकार करने में स्व. राजीव गांधी की भूमिका रही। देश में लैंगिक अनुपात के मामले में छत्तीसगढ़ पहले स्थान पर हैं यहां महिलाएं पुरूष के कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में लागू की गई योजनाओं के साथ-साथ राज्य की कांग्रेस सरकार की योजनाओं का भी जिक्र किया।
कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ विधानसभा के अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत ने आभार प्रदर्शन करते हुए कहा कि कोरबा में इस तरह का आयोजन के बारे में उन्होंने सोचा था जो पूरे प्रदेश में उदाहरण बने। यह कार्यक्रम आत्ममूल्यांकन का है कि आरक्षण से अवसर तो मिल जाता है मगर सक्षमता नहीं दे पाए। बाल विवाह, दहेज प्रथा, भ्रूण हत्या, घरेलू हिंसा ऐसे कारण है जिनसे महिला सशक्तिकरण को पूरा बल नहीं मिल पा रहा। वास्तविक अधिकार प्राप्त करने के लिए महिलाओं को स्वयं सशक्त बनना होगा और पति-पत्नी साथ मिलकर चलें तो बेहतर कर सकते हैं। डॉ. महंत ने आयोजन के लिए सभी लोगों के प्रति आभार व्यक्त किया।
इस अवसर पर पंचायत प्रतिनिधियों को उपहार एवं उपस्थित अतिथियों को विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत एवं सांसद ज्योत्सना महंत की ओर से स्मृति चिन्ह भेंट किए गए। कार्यशाला में प्रमुख रूप से विधायक मोहितराम केरकेट्टा, पुरूषोत्तम कंवर, गुरूमुख सिंह होरा, राज्य गौसेवा आयोग के सदस्य प्रशांत मिश्रा, राज्य महिला आयोग की सदस्य श्रीमती अर्चना उपाध्याय, जिला पंचायत अध्यक्ष शिवकला कंवर, सांसद प्रतिनिधि हरीश परसाई, पूर्व विधायक श्यामलाल कंवर, नगर पालिका दीपका अध्यक्ष श्रीमती संतोषी दीवान, जिला कांग्रेस कमेटी ग्रामीण अध्यक्ष सुरेन्द्र प्रताप जायसवाल, शहर अध्यक्ष श्रीमती सपना चौहान, श्रीमती कुसुम द्विवेदी, श्रीमती उषा तिवारी, संतोष राठौर, अंकिता वर्मा, रेखा त्रिपाठी, भावना जायसवाल, लता कंवर, संतोषी पेन्द्रो सहित बड़ी संख्या में पंचायतों के प्रतिनिधि उपस्थित रहे।
सशक्तिकरण में सुधार किंतु और काम करने की जरूरत : अभिषेक
कार्यशाला में जनसंख्या नियंत्रण के विशेषज्ञ अभिषेक कुमार ने विभिन्न 5 बिन्दुओं पर किए गए विभिन्न देशों के सर्वे का परिणाम प्रोजेक्टर के माध्यम से प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ राज्य और कोरबा जिला कई मामलों में आगे है तो कुछ क्षेत्रों में विशेष काम करने की जरूरत है। पिछले 5 वर्षों के दौरान शहरीकरण में वृद्धि हुई है। महिला शिक्षा का प्रतिशत बढ़ा है। लिंगानुपात में छत्तीसगढ़ में प्रत्येक 1000 पुरूष पर 1015 महिलाएं तो कोरबा जिले में यह आंकड़ा 1034 हैं जो कि अच्छा सूचकांक हैं। बाल विवाह और किशोरियों में गर्भावस्था के मामलों में काफी कमी आई है। छत्तीसगढ़ में बाल विवाह 21 प्रतिशत से घटकर 12 और कोरबा जिले में 20 प्रतिशत से घटकर 7 प्रतिशत हुआ है। किशोरियों में गर्भावस्था का आंकड़ा घटकर 1 प्रतिशत हो गया है जो अच्छा है। महिला सशक्तिकरण के सर्वे बताते हैं कि घरेलू मामलों में महिलाओं की सहमति की सहभागिता 90 प्रतिशत है। आज राज्य में 80 तो कोरबा जिले में 75 प्रतिशत महिलाओं का खुद का खाता है और स्वयं लेन-देन करती हैं। वे अपने कठिन दिनों के दौरान हाईजिनिक तरीके उपयोग करती हैं लेकिन इसके प्रति जागरूकता को और बढ़ाना होगा। राज्य में 96 तो जिले में 82 प्रतिशत घरों में पेयजल, क्रमश: 77 व 73 प्रतिशत घरों में शौचालय निर्मित हैं। धुआं रहित ईंधन का उपयोग राज्य में 33 तो जिले में 36 प्रतिशत है जिसमें सुधार की जरूरत है। परिवार नियोजन की आधुनिक विधि में 68 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज है तो प्रजनन दर पिछले 28 वर्षों के अनुसार 44 प्रतिशत कम हुआ है। गर्भनिरोधक विधियों का उपयोग राज्य में 68 प्रतिशत, कोरबा जिले में 54 प्रतिशत, आधुनिक गर्भनिरोधक विधि का उपयोग राज्य में 62 प्रतिशत हुआ है तो जिले में पिछले 5 वर्ष में यह 3 प्रतिशत कम दर्ज हुआ है। बच्चों में टीकाकरण की दिशा में सुधार हुए हैं और 90 प्रतिशत बच्चे टीकाकृत हैं जबकि एनीमिया राज्य व जिले में बढ़ना चिंताजनक है। अभिषेक कुमार ने सुझाव दिया कि पंचायती राज संस्थाओं को ग्रामीणों के मध्य प्रजनन के संबंध में जागरूक करने की जरूरत है। वे अपनी भागीदारी लोगों के बीच हर विषय पर सुनिश्चित करें तो अपेक्षित सुधार दर्ज होंगे।