आलेख

कोरोना की दूसरी लहर और गांव में बड़ी दीदी का विवाह

 

यूँ तो 15 वर्ष पूर्व बाबू जी के आकस्मिक निधन के बाद से ही मैं शहर पढ़ने फिर रोजगार के लिए पलायन कर चूका था तब गांव में छोटे भाई ने कुछ साल खेती किसानी सम्भाली फिर भाई भी भारतीय फ़ौज में अपनी सेवा देने चला गया तब गांव में माँ और दीदी ही रहीं दीदी को मैंने हमेशा बड़ा भाई ही माना था पैसे से लेकर अन्य सहायता दीदी से समय समय पर मैंने लिया और अब उनकी विवाह में उनको एक स्कूटी उपहार देकर उनको ख़ुशी ख़ुशी विदा करने का मेरा सपना था हम गांव के रहने वाले न बेहद साफ दिल और नाजुक होते हैं हमें अपनी भावनाओ को व्यक्त करने नहीं आता है हम भाई बहन का प्यार आपस में तो बहुत होते हैं लेकिन उसको जाहिर नहीं कर पाते हैं दीदी के विवाह से मैं काफी खुश था अपना प्यार और ख़ुशी जाहिर करने के लिए मैंने दीदी को सरप्राइज गिफ्ट देने का प्लान बनया। गांव में दीदी के विवाह में बस 2 दिन ही शेष थे सभी काफी उत्साहित और खुश थे मेरी कार्यालय से अवकास स्वीकृत हो चुके थे लेकिन घर जाने से पहले मेरा प्लान था कि एक बार कोरोना का रैपिड टेस्ट करवा ही लिया जाये वो इसलिए क्योंकि सुबह से ही आज मुझे नाक में किसी भी प्रकार के सूंघने की क्षमता का अहसास नहीं हो रहा था। वैसे तो मेरे स्वास्थ्य में किसी प्रकार की कोई समस्या नहीं थी लेकिन गांव में दीदी की शादी में मेहमान और बच्चों को संक्रमण फैलने के डर से मैंने सोचा एहतियातन टेस्ट करवा लेना ही उचित होगा फिर कई करीबियों से सलाह लेने के बाद आखिर शाम को 4 बजे टेस्ट करवा ही लिया और ए क्या जिस बात का डर था वही हुआ सामान्य लक्षणों के साथ मेरा रिपोर्ट कोरोना संक्रमित पाया गया। डॉक्टर ने मुझे चिकित्सीय सलाह और दवाइयाँ देकर 28 दिनों तक घर पर ही रहने की सलाह दिये जिसका पालन करना मेरे एवं मेरे परिवार के लिए जरुरी था।
यह वह दौर था जब छत्तीसगढ़ में कोरोना की दूसरी लहर का आगाज हो रहा था अप्रैल 2021 की दूसरी तारीख इसके पहले मार्च 2020 में कोरोना का पहला लहर हमें डराकर जा चूका था साल भर काफी मुश्किलो का दौर हम सब ने देखा था। मैं जब कोरोना पोजिटिव आया तब मानो उदासी का काला बादल छा गया दो दिन बाद ही घर में सगी बड़ी बहन की शादी होनी थी 4 भाई बहनो में तीन की शादी पहले ही हो चुकी थी चूँकि बाबू जी के जाने के बाद घर में यह तीसरा और आखरी विवाह था इसमें तो भाई को होना अनिवार्य था लेकिन कोरोना का ऐसा डर जिसके आगे सब बौने साबित हो रहे थे। मैंने घर में सब को समझाया की मेरी अनुपस्थिति में ही तय मुहूर्त पर विवाह सम्पन्न की जाए। दीदी वैवाहिक परीधान में तैयार हो रहीं थीं तब शहर से मैंने 2 पहिया वाहन प्लेज़र स्कूटी अपनी दीदी को शादी में उपहार स्वरुप देने भिजवाया था जिसे शहर से लेकर मेरा फुफेरा भाई बल्लू पंहुचा था। यूँ तो मैं हाल फ़िलहाल ही खुद स्थिर हुआ था मेरा भी इस वक्त मेरा बेटा डेढ़ वर्ष का हो चूका था और मैं अपनी बीवी बच्चे के साथ शहर में ही रहता हूँ मेरे सर पर खुद के काफी कर्जे थे लेकिन मुझे बहुत मन था कि दीदी को स्कूटी दूँ और उसके लिए मैंने सरप्राइज योजना बनाया। मासिक क़िस्त में मैंने शहर से स्कूटी ली तथा ठीक बारात आने से पहले गांव भिजवाया जब घर में सब को पता चला तब सभी काफी भावुक और खुश हुए। मुझे याद है पहले जब परिवार में विवाह होते थे तब खेत बिक जाते थे लेकिन हम दोनों भाइयों ने अपनी विवाह अपने हिसाब से सामान्य कम खर्चो में ही धूमधाम से किया था अब कोरोना काल में दीदी की शादी भी काफी सामान्य हो रही थी लेकिन परिवार वालो को बिना पूर्व जानकारी दिए मेरे द्वारा दीदी के लिये स्कूटी भेजना सब के लिए अचंभित कर देने वाला रहा। अपनी ही सगी बड़ी बहन के विवाह में न जा पाने का मलाल मुझे पूरा जीवन रहेगा जिसे कोरोना काल ने दिया था घर में ख़ुशी का माहोल था लेकिन परिवार में अंदर से कोई खुश नहीं था जब नाते रिश्तेदारों को मेरा कोरोना संक्रमित होने का सुचना मिला तो कई रिश्तेदार विवाह में आये तक नहीं इस डर से की क्या पता परिवार में भी किसी को कोरोना हो जब की मैं उन सभी से डेढ़ सौ किलोमीटर दूर था जहाँ मुझे कोरोना हुआ था। वैवाहिक रश्मो के दौरान कई बार परिवार या रिश्तेदारों द्वारा मुझे वीडियो कॉल किया गया लेकिन सब भावुक हो जाने लग जाते उस स्थिति में मैं कॉल ही नहीं करता। तय मुहूर्त पर विधिवत विवाह सम्पन्न हुआ सभी मेहमान अपने अपने घर गये। इस बार कोरोना की दूसरी लहर ने पिछले बार से ज्यादा खतरनाक रूप दिखाया एक भाई जीते जी अपनी सगी बड़ी बहन की शादी पर नहीं जा पाया आगे जैसे जैसे अप्रैल का माह बढ़ते गया प्रदेश में वैसे ही कोरोना का ग्राफ और उससे होने वाले मृत्यु भी बढ़ने लगे ऐसा कोई परिवार नहीं था जिसके परिचित में किसी की जान नहीं गयी हो। हर ओर दुखो का आलम रहा अस्पताल को छोड़कर बाकि सारे स्थान बंद रहे एक से डेढ़ माह का समय मानो विनाशकाल बनकर आया थोड़ी सी लापरवाही से जान गवाने का डर। कई अपनों को खोने के बाद तमाम मुस्किलो से लड़ते हुए हमने कोरोना से जीत हासिल किया। लेकिन इसने कई घरो को उजाड़ दिया। कोरोना ने हमसे बहुत कुछ छिना तो वही हमें बहुत कुछ सिखाया भी प्रकृति के प्रति हमारी जवाबदेही और जिम्मेदारी बताई तो वैश्विक महामारी में आपसी भाई चारा भी सिखाया। प्रकृति ऐसा दोबारा मंजर कभी न दिखाए जिससे एक भाई अपनी बहन को विवाह के मण्डप से विदा करने न जा पाये न कोई घर उजड़े न कोई अनाथ हो। इसके लिए स्वक्ष एवं स्वास्थ्य जीवन तथा स्वक्ष प्रकृति अति आवश्यक है।

बलवंत सिंह खन्ना
स्वतन्त्र लेखक, कहानीकार

Editor in chief | Website | + posts
Back to top button
error: Content is protected !!