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जरूरतमंद स्कूलों में प्राथमिकता के आधार पर शिक्षकों की हुई नियुक्ति।

गुरु बिन ज्ञान नहीं: शिक्षक विहीन स्कूलों को मिला नया जीवन।

(ट्रैक सिटी)/ राज्य शासन द्वारा शिक्षा व्यवस्था को बेहतर और समावेशी बनाने के लिए शालाओं और शिक्षकों का युक्तियुक्तकरण किया जा रहा है। शिक्षक विहीन शालाओं में शिक्षकों की पदस्थापना की जा रही है। अब बच्चों को स्कूल खुलने का इंतजार है। अब वह नए जोश और उमंग से स्कूल में आएंगे और क्यों न आए क्योकि अब उन्हें नये शिक्षक मिलने वाला है। जहां कई वर्षाें से कोई शिक्षक नही था वहां अब बच्चों और शिक्षकों की आवाज गूंजेगी। दुर्ग जिले के शासकीय प्राथमिक शाला अगार में बच्चों की दर्ज संख्या 85 है जहां एक भी शिक्षक कार्यरत नही थे, परंतु काउंसिलिंग के बाद अब वहां 3 शिक्षकों की पदस्थापना की गई है। इसी प्रकार शासकीय प्राथमिक शाला ढौर में दर्ज संख्या 42 है और शिक्षक की संख्या निरंक था, काउसलिंग उपरांत 2 शिक्षक की नियुक्ति की गई। इसी तरह शासकीय प्राथमिक शाला खपरी बरहा में दर्ज संख्या 25 है, अब वहां 2 शिक्षकों को पदस्थ किया जा रहा हैं।

पहले स्कूल तो था पर गुरुजी नहीं थे। उक्त तीनों स्कूलों में बच्चे पंजीकृत हैं, लेकिन एक समय था जब वहां एक भी शिक्षक नहीं थे। बच्चे स्कूल जरूर आते थे, पर पढ़ाई नहीं हो पाती थी। लेकिन हाल ही में हुई शिक्षकों की काउंसलिंग ने गांव के स्कूल की तस्वीर बदल दी। तीनों स्कूलों में अब शिक्षक पदस्थ हो चुके हैं। आगामी सत्र से स्कूलों में बच्चों की चहल-पहल और कक्षाओं से आवाजें गुंजेगी। पहले बच्चे इंतजार में लगे रहते थे कि कब शिक्षक आएंगे और पढ़ाएंगे। बच्चों के इंतजार के दिन अब खत्म हो गए। अब बाकी स्कूलों के सामान शासकीय प्राथमिक शाला अगार, शासकीय प्राथमिक शाला ढौर एवं शासकीय प्राथमिक शाला खपरी बरहा में भी पढ़ाई होगी। शिक्षक आएंगे, कक्षाएं लगेगी और बच्चे पूरे मन से पढ़ाई में जुट जाएंगे।

गांव वालों के लिए यह बदलाव सिर्फ शिक्षकों व शालाओं का युक्तियुक्तरण नही है। यह उनके बच्चों के भविष्य की बुनियाद है। यह बदलाव शिक्षक काउंसलिंग के चलते संभव हो सका, जिसके माध्यम से जरूरतमंद स्कूलों में प्राथमिकता के आधार पर शिक्षकों की तैनाती की गई है।

गुरू बिन ज्ञान नहीं रे, यह कहावत वर्षों से सुनते आ रहे हैं। गुरू ही लोगों को सही ज्ञान और मार्गदर्शन देता है। बच्चों को सही दिशा व उच्च स्थान में पहुंचाने में शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, लेकिन इसका असली अर्थ तब समझ आता है जब स्कूल में शिक्षक हों।

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