कोरबा

भारती हो या हीरासाय, गोधन न्याय योजना से बढ़ गई है आय

गोबर बेचने से मिली राशि से खरीदी स्कूटी और बाइक

कोरबा,ट्रैक सिटी न्यूज़। कुछ साल पहले हीरासाय के पास गाय, बैल और भैंस तो थे, लेकिन उनकी आमदनी सिर्फ दूध बेचने से एक सीमा के भीतर ही थी। मवेशियों के गोबर का उपयोग खाद और कण्डे बनाने तक ही सीमित था। वह चाहकर भी अपनी आमदनी बढ़ा नहीं सकता था। कुछ ऐसी ही पशुपालक भारती पेन्दों थी। घर में गाय थी, लेकिन आमदनी का जरिया कुछ नहीं था। गोबर को साफ करना ही दिनचर्या थी। प्रदेश में जब गोधन न्याय योजना प्रारंभ हुआ तो इन्होंने भी अपना नाम पशुपालक के रूप में पंजीकृत कराया। ये दोनों रोजाना गोबर संग्रहित किया करते थे और इसे गौठान के माध्यम से बेचने लगे। कुछ दिन बाद गोबर बेचकर उन्होंने इतनी राशि जोड़ ली कि बाइक, स्कूटी खरीदने के साथ अन्य जरूरी कार्यों में भी गोबर बेचकर जुटाई गई राशि एक बड़ा सहारा बन गया। पशु रखकर भी कुछ रूपये नहीं आमदनी अर्जित नहीं कर पाने वाले हीरासाय और भारती की आमदनी अब गोबर बेचने से बढ़ गई है।
कृषि विभाग से मिली जानकारी के अनुसार पोड़ी उपरोड़ा विकासखण्ड अंतर्गत ग्राम महोरा के किसान हीरासाय के पास 8 पशुएं (गाय, बैल, भैंस) थी। हीरासाय ने बताया कि इन पशुओं के गोबर का उपयोग खाद या कण्डे के रूप में कर पाता था। जबसे वह गोधन न्याय योजना से जुड़ा तो उसकी आमदनी गोबर बेचने से बढ़ने लगी। उन्होेंने बताया कि अभी तक 334.82 क्विंटल गोबर बेच चुके हैं, जिससे 66964 रूपए की आमदनी हुई। हीरासाय ने बताया कि गोबर बेचकर उसने 12 नग बकरियां खरीदी है। मोटर सायकल खरीदने के अलावा घर के निर्माण कार्यों और बच्चों की पढ़ाई में भी कुछ राशि का उपयोग किया है। उसने बताया कि गौठान से वर्मी खाद का क्रय कर अपने खेत में भी उपयोग करता हूं, जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ गई है। इसी तरह विकासखण्ड पाली अंतर्गत ग्राम नानपुलाली की श्रीमती भारती पेन्दों ने बताया कि उसके घर में दो गाय है। पहले गोबर खरदी नहीं होने से वह गोबर पर ज्यादा ध्यान नहीं देती थी। जब से गोधन न्याय योजना प्रारंभ हुआ है तब से खेत-खलिहाने से साफ गोबर को एकत्र कर गौठान में नियमित विक्रय करती हूं। भारती ने बताया कि एक साल में लगभग 23 हजार की राशि से अधिक का गोबर बेच चुकी है, जिसमें से 22 हजार की राशि बचत कर एक सेकण्ड हैण्ड स्कूटी खरीदी है। उसका कहना है कि वह अपनी बच्ची को नियमित स्कूल भेजना चाहती है, ताकि बच्ची पढ़ लिखकर कुछ बन सकें। बच्ची को स्कूल तक छोड़ने और लाने में ही बहुत समय लग जाता था, मुझे एक स्कूटी की जरूरत महसूस हो रही थी, जो गोधन न्याय योजना से पूरा हो गया। अब समय की बचत के साथ पैसे की बचत भी हो रही है।

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