कोरबा

आजादी की गौरव यात्रा का का हुआ समापन

कोरबा। आधुनिक भारत, जवाहरलाल नेहरू के प्रति पर्याप्त रूप से ऋणी है। महात्मा गांधी ने भारत को अपने को समझना सिखाया, नेहरू ने अपने को ही नहीं, अपितु दूसरों को भी समझना सिखाया। गांधी जी को राष्ट्रपिता कहा जाता है, तो नेहरू जी को आधुनिक भारत का निर्माता माना जाता है। उन्होंने भारत में लोकतंत्र को सबल बनाने में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान दिया और वे निरन्तर सभी को मानवीय प्रतिष्ठा और समानता प्रदान करने के लिए अथक प्रयास करते रहे। उन्होंने भारतीय जनमानस को राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक ठहराव के दलदल से बाहर निकाला और उन्हें प्रगतिशील मार्ग पर अग्रसर किया। आर्थिक क्षेत्र में तो उनका योगदान अत्यन्त ही विशिष्ट है। उनके द्वारा प्रारम्भ पंचवर्षीय योजनाओं, जिनको लोकतंत्र और समाजवाद की भावना से क्रियान्वित किया गया, ने भारत की शक्ल ही बदल दी। उन्होंने समाज को समाजवादी ढाँचा की अवधारणा को सार्थकता प्रदान की। उन्होंने भारत के अन्तर्राष्ट्रीय स्तर को ऊँचा उठाया और राष्ट्रों के समुदाय में उन्होंने भारत को प्रतिष्ठा का स्थान दिलाया। उक्त कथन राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने कांग्रेस के गौरव यात्रा के छठवें व अंतिम दिवस बुधवारी में व्यक्त किया उन्होंने नेहरू ने विश्व को शान्तिपूर्ण सह अस्तित्व एवं गुटनिरपेक्ष के महत्वपूर्ण विचार दिए। उन्होंने उपनिवेशवाद, नव उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद, रंगभेद एवं किसी भी प्रकार के अन्याय के विरुद्ध अपनी आवाज उठायी और अपने जीवनकाल में उन्हें एशिया अफ्रीका और लेटिन अमेरिका के लगभग 40 देशों को औपनिवेशिक शासन से मुक्त होने को देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उन्होंने अपने समस्त जीवन को विश्व के विभिन्न देशों के बीच मैत्री और सहयोग को सबल बनाने में लगाया। यही कारण था कि समस्त विश्व उन्हें मानवता का मित्र मानता था। उन्होंने ध्येयनिष्ठ जीवन बिताया और अन्तिम साँस तक उस ध्येय को पूरा करने का प्रयास करते रहे।

आजादी के गौरव यात्रा के अंतिम दिवस आजादी के महापुरूषों को याद करते हुए राजकिशोर प्रसाद ने कहा कि ज्यों की त्यों घर दीन्ही चदरिया कबीर की इस उक्ति को चरितार्थ करते थे भारत के द्वितीय राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन, जिस परम पवित्र रूप में वह इस पृथ्वी पर आए थे बिना किसी दाग- धब्बे के उसी पावन रूप में उन्होंने इस वसुंधरा से विदाई ली लम्बे समय तक भारत के उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति रहकर जब वह दिल्ली से विदा हुए, तो प्रत्येक दिल ने उनका अभिनन्दन किया भारत के राष्ट्रपति पद की गरिमा उन्हीं जैसे सादगी की ऊँची जिन्दगी जीने वाले महामानव से सार्थक हुई अपनी ऋजुता, सौम्यता और सरकारिता के कारण वह अजातशत्रु हो गए थे। वह उन राजनेताओं में से एक थे, जिन्हें अपनी संस्कृति एवं कला से अपार लगाव होता है। वह भारतीय सामाजिक संस्कृति से ओतप्रोत आस्थावान हिन्दू थे इसके साथ ही अन्य समस्त धर्मावलम्बियों के प्रति भी गहरा आदरभाव रखते थे जो लोग उनसे वैचारिक मतभेद रखते थे, उनकी बात भी वह बड़े सम्मान एवं धैर्य के साथ सुनते थे कभी-कभी उनकी इस विनम्रता को लोग उनकी कमजोरी समझने की भूल करते थे, परन्तु उनकी यह उदारता, उनकी दृढ़ निष्ठा से पैदा हुई।

सभापति श्यामसुंदर सोनी ने  आजादी के 75वी वर्षगांठ पर आयोजित गौरव यात्रा के दौरान कहा कि मेरा सपना- मेरा भारत विश्व में सबसे ऊंचा बने इसका खोया गौरव वापस लौटे यह फिर से दुनिया का गुरु बनके संस्कृति में सबसे ऊंचा बने – अध्यात्म और धर्म में यह विश्व का मार्गदर्शक बने । धन संपदा में भी भारत सर्वाेपरि बने। सोने की चिड़िया कहलाए यहाँ बड़े-बड़े उद्योग धंधे हो। भारत धर्म शक्ति के साथ – साथ युद्ध- शक्ति में भी किसी से कम न हो । यहाँ के सैनिक कुशल और अनुशासित हैं उनके पास युद्ध की नई से नई तकनीक हो परमाणु शक्ति से युक्त हो। भारत शांति का अग्रदूत बने गुट निरपेक्ष आंदोलन का नेता बने विश्व में शांति कायम करने की सच्ची कोशिश करें । भारत में प्रमुख समस्याएँ गरीबी, जनसंख्या, अनपढ़ता, बेकारी कम हो। देश में रोजगार बढ़ाने वाली योजनाएँ बने ।

जिला कांग्रेस अध्यक्ष सपना चौहान ने भारत के संविधान रचियता डॉ. भीवराव अम्बेडकर को याद करते हुए कहा कि उस वक्त भारत गोरी-सरकार की गिरफ्त में था और भारत पर उसका एक छत्र राज्य था। अंग्रेज हिन्दुओं में इस छुआछूत रूपी बीज को डालकर फूट डालो और शासन करो की फसल काट रहे थे और हिन्दू फँसे थे, ऊँच- नीच, छोटा- बड़ा, अर्थात् इन भेद-भावों की तुच्छ व निचली भावनाओं के दलदल में भीमराव संस्कृत की शिक्षा ग्रहण करना चाहते थे, परन्तु संस्कृत के शिक्षक ने उन्हें शिष्य रूप में स्वीकार नहीं किया, क्योंकि वह  अछूत  थे। विवश होकर उनको फारसी भाषा का अध्ययन करना पड़ा। आगे चलकर उन्होने ही भारत की संविधान लिखें।

महिला कांग्रेस अध्यक्ष कुसुम द्विवेदी ने सरदार वल्लभ भाई पटेल को याद करते हुए कहा कि भारत के ताजा परिप्रेक्ष्य पर गौर किया जाए तो देश का लगभग आधा भाग साम्प्रदायिक एवं विघटनकारी राष्ट्रद्रोहियों की चपेट में फँसा दृष्टिगोचर होता है, ऐसी संकट की घड़ी में सरदार बल्लभ भाई पटेल की स्मृति हो उठना स्वाभाविक है। ज्ञातव्य है कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत के सामने ज्वलन्त प्रश्न था कि छोटी- बड़ी 562 रियासतों को भारतीय संघ में कैसे समाहित किया। जाए तब इस जटिल कार्य को जिस महापुरुष ने निहायत सादगी तथा शालीनता से सुलझाया – वे थे । आधुनिक राष्ट्र निर्माता लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल पटेल का भरा- पूरा सुडौल शरीर उनकी उग्र प्रकृति का परिचायक था, पर वे अन्दर से बर्फ के समान शान्त व निर्मल थे। उनकी तेजस्वी आँखों में मनुष्य की अंतर्वृत्ति को चीन्हने की अनुपम शक्ति थी। हास्य- विनोदी प्रकृति के होते हुए भी वे स्पष्ट वक्ता थे, पर बोलते कम थे उनका कार्य करने में विश्वास था संयम, सादगी, सहिष्णुता, सत्य साहस और दृढ़ता के प्रतीक थे।
पूर्व सभापति संतोष राठौर ने आजदी के 75वीं वर्षगांठ की बेला पर कहा कि भारतीय संस्कृति-विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में एक-संस्कृति और सभ्यता में अंतर-संस्कृति किसी देश के आचार-व्यवहार और संस्कार की प्रतीक भारत की संस्कृति ज्ञान, त्याग, अहिंसा, धर्म और शांति की संस्कृति। सबके कल्याण का विचार-विश्व मैत्री की भावना-धर्म का ज्ञान फैलाया बौद्ध धर्म चीन, भारत जापान तक फैला। भारत में अहिंसा और त्याग की महत्व-राम जैसे त्यागी को सम्मान, बुद्ध, महावीर, अशोक जैसे त्यागियों का सम्मान-गांधी, विनोबा, कबीर जैसे संतों का सम्मान। भारत की संस्कृति में सबकी एकता का विचार-हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सबको समान महत्व। शांतिप्रिय संस्कृति। भारत गुटनिरपेक्ष देशों का अगुआ है।

इस अवसर पर सुरेश सहगल, उषा तिवारी, विकास सिंह ब्लॉक अध्यक्ष दुष्यंत शर्मा, पार्षद सुनीता राठौर, प्रदीप जायसवाल, सुखसागर निर्मलकर, रविसिंह चंदेल, अनुज जायसवाल, कृपाराम साहू, बद्रीकिरण, पालूराम साहू, एल्डरमेन आरिफ खान, रेखा त्रिपाठी, रामगोपाल यादव, मुकेश राठौर, मनकराम साहू, हाजी इकबाल दयाला, प्रदीप पुरायणे, राकेश पंकज, मुन्ना खान, प्रभात डडसेना, अशोक लोध, बृजभूषण प्रसाद, गीता महंत, लक्ष्मी महंत, सीमा उपाध्याय, राजेश यादव, बंटी शर्मा, शिवनारायण श्रीवास, मंदाकनी, किरण साहू, उषा साहू, गौरी चौहान, बद्री प्रसाद साहू, कन्हैया राठौर, महेन्द्र सिंह चौहान, शैलेश सोनवंशी, महेन्द्र निर्मलकर, मो. आलम, कुंजबिहारी साहू, इतवारी यादव, पुनम निषाद, ज्योति राजपूत, हर्षिता भारती, अश्विन कौशिक, गुलशन साहू, ब्रजेश गभेल, शेखबहादूर क्षत्रिय, सोनी कर्ष, श्रीराम साहू, विजय धीवर, सानिया भारती, संतोष केंवट, श्वेता केंवट, कमलेश क्षत्रिय, सुभाष राठौर, कुलदीप राठौर,  मालती गभेल, यशवंत चौहान, संजय कंवर, हरीशंकर कंवर, रामेश्वरी राठौर, मोहित चन्द्रा, इरफान खान, शशी अग्रवाल, सुनीता तिग्गा, माधुरी ध्रुव, संतोषी यादव, पुष्पा यादव, गोपाल साह, द्रोपती तिवारी सहित सैकड़ो की संख्या में कार्यकर्ता और पदाधिकारी उपस्थित थे।

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