कोरबा- छत्तीसगढ़ प्रदेश के लोक पर्व भोजली महोत्सव पूरे प्रदेश में बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। इसी कड़ी में कोरबा जिले में भी विभिन्न बस्ती में भोजली पूजा का आयोजन किया गया है,जिसमें दर्री के रूमगढ़ा बस्ती में भी यह आयोजन ग्रामवासियों द्वारा किया गया।जिसमें कोरबा जिला भारतीय जनता पार्टी के पूर्व जिला महामंत्री नवीन पटेल,नेता प्रतिपक्ष हितानंद अग्रवाल सम्मिलित होकर भोजली दाई से आशीर्वाद लिया।
कोरबा जिला के पूर्व महामंत्री नवीन पटेल भाजपा ने प्रदेश वासियों को भोजली पर्व का बधाई देते हुए भोजली पूजा का महत्व बताते हुए कहा कि हमारे माताएं बहनें द्वारा अच्छी वर्षा एवं भरपूर भंडार की कामना करते हुए सावन महीने की सप्तमी को छोटी॑-छोटी टोकरियों में मिट्टी डालकर उनमें अन्न के दाने बोते हैं। ये दाने धान, गेहूँ, जौ के होते हैं। तीज या रक्षाबंधन के अवसर पर फसल की प्राण प्रतिष्ठा के रूप में इन्हें छोटी टोकरी या गमले में उगाया जाता हैं। जिस टोकरी या गमले में ये दाने बोए जाते हैं उसे घर के किसी पवित्र स्थान में छायादार जगह में स्थापित किया जाता है। उनमें रोज़ पानी दिया जाता है और देखभाल की जाती है। दाने धीरे-धीरे पौधे बनकर बढ़ते हैं, महिलायें उसकी पूजा करती हैं एवं जिस प्रकार देवी के सम्मान में देवी-गीतों को गाकर जवांरा–जस–सेवा गीत गाया जाता है वैसे ही भोजली दाई के सम्मान में भोजली सेवा गीत गाये जाते हैं। सामूहिक स्वर में गाये जाने वाले भोजली गीत छत्तीसगढ की शान हैं। खेतों में इस समय धान की बुआई व प्रारंभिक निराई गुडाई का काम समापन की ओर होता है। किसानों की लड़कियाँ अच्छी वर्षा एवं भरपूर भंडार देने वाली फसल की कामना करते हुए फसल के प्रतीकात्मक रूप से भोजली का आयोजन करती हैं।
बोए हुए दाने जिसे भोजली कहते हैं, सावन की पूर्णिमा तक चार से छः इंच तक के पौधे निकल आते हैं। रक्षाबंधन की पूजा में इसको भी पूजा जाता है और धान के कुछ हरे पौधे भाई को दिए जाते हैं या उसके कान में लगाए जाते हैं। भोजली नई फ़सल की प्रतीक होती है। और इसे रक्षाबंधन के दूसरे दिन विसर्जित कर दिया जाता है। नदी, तालाब और सागर में भोजली को विसर्जित करते हुए अच्छी फ़सल की कामना की जाती है।