आलेख

कागज के पाम्पलेट और साम्भवी दीदी की संघर्ष यात्रा

शिक्षक दिवस पर गुरूजनों को समर्पित विशेष संस्मरण…

विश्वास – जो होता है अच्छे के लिए होता है, जो होगा, अच्छा ही होगा-साम्भवी

आज का दिन बहुत ही खास है। पूरा विद्यालय परिसर विशेष तरीके से सजा हुआ है। एक उत्सव का महौल सा दिखाई पड़ रहा है। आज शिक्षक दिवस पर विद्यालय में पुराने छात्र-छात्राओं ने मिलकर हमारे शिक्षक परिवार के लिए सम्मान समारोह आयोजित किया है। इस आयोजन की खास बात यह है कि सभी तैयारियां पूर्व विद्यार्थियों द्वारा ही की गई हैं। इस समारोह को लेकर हम सभी बच्चे भी काफी उत्साहित हैं। यह बात तब की है जब मैं वर्ष 2006-07 में पामगढ़ स्थित विद्या निकेतन मॉडल कान्वेंट पब्लिक स्कूल में कक्षा 12वीं का छात्र था । विद्यालय के पूर्व छात्रों की सफलता और संघर्ष से हम भी अपने जीवन लक्ष्य को प्राप्त करना चाह रहे थे, उनसे कई सवाल करने के इच्छुक थें।

कार्यक्रम अपने निर्धारित समय पर प्रारम्भ हुआ। हजारो की संख्या में विद्यालय के पूर्व विद्यार्थी पहुचे थे। किसी भी विद्यालय परिवार के लिए यह बहुत गर्व की बात होगी कि उनके पूर्व छात्र एक कस्बे के विद्यालय से बुनियादी पढ़ाई पढ़कर आज अनेक गौरव पूर्ण पदों पर पदस्थ रहते हुए महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों का निर्ववहन कर रहे थे। सभी ने अपने गुरुजनों का सम्मान करने के लिए आज एक साथ इतनी बड़ी संख्या में इकठ्ठा हुए थे। हमारे विद्यालय के संचालक एवं प्राचार्य नरेंद्र पाण्डेय सर के प्रति सभी का अति विशिष्ट सम्मान ही था जो सभी ने अपने पुराने दिनों को याद करते हुए अपने-अपने अनुभवों को सभी से साझा किया। यक़ीनन हर किसी की कहानी में एक विशेष प्रकार की गहराई थी जिससे उन्हें सफलता प्राप्त करने के लिए एक सकारात्मक दिशा मिली। कइयों ने अपनी संघर्ष यात्रा को साझा किया जो बहुत ही प्रेरणादायी लगीं, लेकिन मुझे सबसे ज्यादा उत्साहित किया वो थीं साम्भवी दीदी, जी हाँ साम्भवी दीदी जो हमारे विद्यालय की पूर्व छात्र एवं वर्तमान में हमारे पड़ोसी जिले की कलेक्टर थीं जिनकी संघर्ष यात्रा, हर युवा के लिए विशेष प्रेरणादायी है।
साम्भवी दीदी की कहानी यहां पर उन्ही की जुबानी… दीदी कहती हैं कि यूं तो हम लोग शिक्षा के मंदिर में ही पले बढ़े हैं, शिक्षा का मंदिर कहने का तात्पर्य है पिताजी और माता जी दोनों ही स्कूल शिक्षक थे और इसी वजह से घर और विद्यालय हमारे लिए एक जैसा ही था। हमारा लालन-पालन बचपन से ही शैक्षणिक पृष्टभूमि से संबद्ध रहा है और यह कि घर का माहौल भी मंदिर जैसा पवित्र ही रहा है। अपनी स्कूली और महाविद्यालयीन शिक्षा के बाद आगे यूपीएससी की तैयारी के लिए मैं दिल्ली चली गई। अपने माता-पिता की 5 संतानों में हम सभी बहने ही थीं और उनमें भी सबसे बड़ी मैं थी। हमारा कोई भाई नहीं था लेकिन हमारे माता-पिता से हम सभी बहनों को भरपूर स्नेह व प्यार मिला। हम सभी बहनें पढ़ाई में होशियार थीं और मां-पिता जी से हमें संस्कार भी उसी प्रकार मिले थे। मैंने जब दिल्ली जाने की बात कही तब पिता जी आर्थिक खर्चाे को देखते हुए थोड़ा दुविधा में पड़ गए थे लेकिन आखिर में वे राजी हो गये। दिल्ली के मुखर्जी नगर में साझा कमरा लेकर वहीं एक कोचिंग संस्थान में मैंने प्रवेश ले लिया।

तैयारी के दौरान मुझे पिता जी द्वारा दी गई उस दिन की सीख आजीवन याद रहेगी जब उन्होंने कहा था कि हम लोग एक मध्यमवर्गीय परिवार से हैं बेटा इसलिए सिमित खर्च से आगे बढ़ना। वास्तव में हुआ कुछ ऐसा था कि दिल्ली में रहते हुए मुझे कुछ अतिरिक्त पैसे की आवश्यकता पड़ी ताकि जरूरी नोट्स आदि तैयार करने के लिए मैं कुछ स्टेशनरी खरीद सकूं। इस के लिए मैंने पिताजी से शाम को फोन पर बात करते हुए पैसों की मांग की थी। उस समय पिताजी ने मुझसे कहा था कि बेटा मुझे तुम्हारे ऊपर पूरा भरोसा है कि पैसो की तंगी से तुम शहर में ऐसा कोई भी गलत काम नहीं करोगी और न ही किसी गलत संगति में पड़ोगी, जिससे समाज में मेरा सिर शर्म से झुक जाये। मुझे भरोसा है कि तुम मेरा सिर हमेशा गर्व से ऊपर उठा कर रखोगी। पिताजी ने उस दिन मुझे कहा कि बेटा तुम पूरी लगन और मेहनत से एक नई ऊंचाई को हासिल करो और जब उस ऊंचाई पर पहुंचकर स्वयं के द्वारा किए गए मेहनत और संघर्ष की कहानी लोगो को बताओ तब लोगो को तुम्हारी मेहनत पर गर्व हो उनको प्रेरणा मिले। पिताजी ने कहा इस महीने पैसों की थोड़ी तंगी है लेकिन शीघ्र ही मैं पैसे भेजने का प्रबन्ध करूंगा।
उस दिन पिताजी द्वारा कही गई बातें मुझे हमेशा याद रही उस महीने नोट्स तैयार करने के लिए मुझे पैसों की जरूरत पड़ी थी और पिताजी के पास उस वक्त अतिरिक्त पैसो की व्यवस्था नहीं थी। तब मेरे दिमाग में एक ख्याल आया कि कुछ जुगाड़ किया जाए। दिल्ली का मुखर्जी नगर जो आज भी काफी प्रसिद्द है, जाने कितनों को यूपीएससी एवं अन्य प्रतिस्पर्धा परीक्षाओं की तैयारी कराने वालो के लिए मुखर्जी नगर का बहुत बड़ा योगदान रहा है। पूरे देश के प्रशासनिक अधिकरियों को मुखर्जी नगर का नाम हर अधिकारी के जुबान पर रहता है। पिताजी द्वारा दी गई सीख को याद रखते हुए मैंने उस दिन कुछ नया करने का सोचा। दरअसल मुखर्जी नगर में अनेक कोचिंग संस्थान संचालित है जिसके विज्ञापन के लिए रोजाना हजारों पाम्पलेट बांटे जाते है। मेरे मन में वहीं से ख्याल आया और फिर मैं प्रतिदिन कोचिंग खत्म होने के बाद आधा घंटा सड़कों पर खड़ी रहती थी और आधे घंटे तक सड़क पर खड़े होकर सभी का पाम्पलेट लेती। कोचिंग के बाद आधा घंटे तक पाम्पलेट इकठ्ठा करना मेरी दिनचर्या में शामिल हो चुका था। कुछ लोग दोस्ती यारी में कुछ घंटे बर्बाद कर देते थे लेकिन उस समय को मैं पाम्पलेट इकठ्ठा करने में लगाती थी। आप लोग शायद यकीन नहीं करोगे प्रतिदिन मैं लगभग 500 पाम्पलेट इकठ्ठा कर लेती थी। दरअसल पाम्पलेट के पीछे का भाग कोरा रहता था। मैंने अपनी पूरे साल भर की पढ़ाई और सारे नोट्स उसी पाम्पलेट के दूसरे हिस्से का प्रयोग कर तैयार किया था। सारे नोट्स को यादगार के तौर पर आज भी मैने सुरक्षित रखा हुआ है। इसके अलावा मैं रात में भोजन कम ही करती या नहीं करती थी ताकि मुझे जल्दी नींद न आए और मैं ज्यादा देर तक पढ़ाई कर सकूँ इसके लिए मैं एक गिलास पानी में 1 रूपये वाली चॉकलेट को घोलकर पी जाती थी जिससे मेरी भूख भी मिट जाये और पढ़ाई के वक्त नींद भी नहीं आये। इस व्यवस्था से मुझे एक लाभ तो यह मिलता था कि मैं नींद के आगोश में जल्दी न जा सकूं और दूसरा यह कि उस समय आर्थिक तंगी के दौर में एक समय के भोजन का खर्च भी बच जाता था। लगभग डेढ़ साल से अधिक समय तक, जब तक कि मैं यूपीएससी में चयनित नहीं हो गई इस दिनचर्या को मैंने जारी रखा और फिर मुझे महसूस होने लगा कि कम पैसों में भी जीवन यापन किया जा सकता है।

आज मैं आप सब के प्यार और आशीर्वाद से एक गौरव पूर्ण पद पर रहकर जिम्मेदारी पूर्वक अपने कर्तव्यों का निर्वाहन कर रही हूँ। कई बार हम सुविधा या संसाधनों के अभाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं, लेकिन कहते हैं न कि हर चीज किसी न किसी कारण से ही घटित होती हैं। कहा जाता है कि हमारे साथ जो हुआ, जो हो रहा है और आगे जो होगा, सब अच्छे के लिए है और अच्छा ही होगा। मैंने भी इसी सिद्धान्त को अपनाकर अपना संघर्ष जारी रखा और संसाधनों के अभाव को मैंने अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया और जुगाड़ का सहारा लिया, जो मेरे लिए इतना कठिन भी नहीं था।
हम सभी बहनों ने अनेक कठिनाईयों को पार करते हुए अपने वर्तमान मुकाम को हासिल किया है। इस मुकाम तक पहुंचाने में हमारे माता-पिता एवं हमारे शिक्षकों का अहम योगदान रहा है, उनका आशीर्वाद, स्नेह, प्यार और मार्गदर्शन सर्वोपरि स्थान रखता है। हमारे पिताजी का भी सपना था कि वह भी एक प्रशासनिक अधिकारी बनें, लेकिन तब गांव में आर्थिक समस्याओं को देखते हुए उन्होंने नोबल प्रोफेशन को चुना और समाज में शिक्षा का अलख जगाने के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया। हम सबका सौभाग्य ही है कि हमारी माता जी भी एक शिक्षक हैं और दोनों ने मिलकर समाज से अशिक्षा का तिमिर मिटाने का संकल्प लिया। उनके द्वारा दी गई शिक्षा कीे बदौलत ही मैं आज यहां तक पहुंच पाई हूं। पिता जी और माता जी के द्वारा दी गई शिक्षा का ही प्रतिफल है कि तमाम कठिनाईयों को पार करते हुए आज हम पांचों बहनें प्रशासनिक सेवा में विद्यमान हैं। एक तरफ आज भी समाज में जहाँ पितृसत्ता का वर्चस्व है वहीं पर हम पांच बहने हर क्षेत्र में कार्यरत हैं। माता पिता हमे ही अपनी असली पूंजी मानते हैं और हमे भी उनपर गर्व है।
साम्भवी दीदी ने अपनी बात जारी रखते हुए आगे कहा कि आप सबने एक कहावत तो जरूर सुनी होगी कि जहां चाह, वहां राह। यदि हमने पूरी निष्ठा से संकल्पित होकर लक्ष्य हासिल करने का उद्यम अपना लिया है तो सफलता मिलना तय है, इसमें दो राय नहीं है। वैसे भी हर अच्छे काम की पूर्णता में बाधाएं तो आती रहेंगी, लेकिन उससे हमें घबराना नहीं चाहिए। वे कुछ समय के लिए हमें परेशान जरूर कर सकती हैं लेकिन यदि इरादे नेक और प्रयास ईमानदारी के हैं तो सफलता हमें अवश्य मिलेगी, इसी विश्वास के साथ आगे बढ़िए, एक दिन ऐसा जरूर आएगा जब दुनिया आपको सम्मान की नजरों से देखेगी और सलाम करेगी। यही सही मायने में हमारी तरफ से गुरूजनों के प्रति सच्ची गुरू दक्षिणा होगी और अपने माता-पिता को समाज में गर्व से सिर ऊंचा करके जीने का अवसर देना होगा।

बलवंत सिंह खन्ना
स्वतन्त्र लेखक, कहानीकार

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